What is Mahakumbh?
What is Mahakumbh?
महाकुंभ एक विशाल हिंदू धार्मिक मेला
(संयोग) है, जो चार पवित्र स्थानों—हरिद्वार,
प्रयागराज
(इलाहाबाद),
उज्जैन और नासिक—में आयोजित किया जाता है। इसे हिंदू धर्म का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है,
जहाँ करोड़ों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। महाकुंभ करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। महाकुंभ सिर्फ एक मेला नहीं है बल्कि यह आस्था, परंपरा और हिंदू संस्कृति का संगम है। श्रद्धालुओं के लिए यह एक पवित्र एहसास है। जिसका इंतजार सभी श्रद्धालुओं को बेसब्री से रहता है। इस साल 13 जनवरी से लगने जा रहा महाकुंभ का मेला कई मायनों में बेहद खास होने वाला है। इस बार 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ लग रहा है। सरल शब्दों में समझें तो 12 साल लगातार 12 वर्षों के तक लगने के बाद पूर्ण महाकुंभ लगता है। जो 144 साल बाद आता है। महाकुंभ का आयोजन इस बार प्रयागराज में हो रहा है। इस बार महाकुंभ में क्या कुछ खास होने वाला है। इसके बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे लेकिन, क्या आप जानते हैं महाकुंभ का इतिहास वर्षों पुराना है। महाकुंभ से जुड़े कई ऐसे रहस्य हमारे ग्रंथों में छिपे हुए हैं जिन्हें उजागर करना जरूरी है। तो आइए जानते हैं महाकुंभ से जुड़े कुछ रहस्य। साथ ही जानते हैं कब और कहा सबसे पहले हुआ था महाकुंभ का आयोजन।
महाकुंभ क्यों मनाया जाता है?
महाकुंभ का आयोजन धार्मिक,
आध्यात्मिक और ज्योतिषीय कारणों से किया जाता है। इसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी है,
जिसमें अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ था। ऐसा माना जाता है कि जब अमृत कलश से बूंदें चार स्थानों पर गिरीं—हरिद्वार, प्रयागराज,
उज्जैन और नासिक—तो वहाँ कुंभ मेले की परंपरा शुरू हुई। समुद्र मंथन के बारे में शिव पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, भविष्य पुराण समेत लगभग सभी पुराणों में जिक्र किया गया है। मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश बाहर आया था तब देवताओं और राक्षसों के बीच तनातनी और संघर्ष को कम करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था। इसके बाद जब देवताओं और राक्षसों के बीच संघर्ष काफी ज्यादा बढ़ गया तो उन्होंने इंद्र देव के पुत्र जयंत को यह अमृत कलश सौंप दिया गया। जयंत कौवे का रूप धारण कर राक्षसों से अमृत कलश को छिनकर उड़ चले थे। जब वह घट को लेकर भाग रहे थे तो अमृत कलश से कुछ बूंदे प्रयागराज, उज्जैन , हरिद्वार और नासिक में गिर गई थी। जहां जहां अमृत कलश की बूंदे गिरी वहां-वहां कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है।
महाकुंभ कब होता है?
महाकुंभ हर 12 साल में एक बार प्रत्येक स्थान पर आयोजित होता है। इसके अलावा:
प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ का महत्व अधिक माना गया है। दरअसल, यहां तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। जिस वजह से यह स्थान अन्य जगहों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। बता दें सरस्वती नदी लुप्त हो चुकी हैं लेकिन, वह धरती का धरातल में आज भी बहती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इन तीन नदियों के संगम में शाही स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए प्रयागराज में इसका महत्व अधिक माना जाता है।
- अर्धकुंभ
हर
6 साल
में
प्रयागराज
और
हरिद्वार
में
होता
है।
- पूर्ण
कुंभ
हर
12 साल
में
चारों
तीर्थों
में
से
एक
में
होता
है।
- महाकुंभ
हर
144 साल
में
केवल
प्रयागराज
में
होता
है।
महाकुंभ का महत्व
'कुम्भ' का शाब्दिक अर्थ “घड़ा, सुराही, बर्तन” है। यह वैदिक ग्रन्थों में पाया जाता है। इसका अर्थ, अक्सर पानी के विषय में या पौराणिक कथाओं में अमरता (अमृत) के बारे में बताया जाता है।मेला शब्द का अर्थ है, किसी एक स्थान पर मिलना, एक साथ चलना, सभा में या फिर विशेष रूप से सामुदायिक उत्सव में उपस्थित होना। यह शब्द ऋग्वेद और अन्य प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में भी पाया जाता है। इस प्रकार, कुम्भ मेले का अर्थ है “अमरत्व का मेला” है।[2]
- धार्मिक
आस्था
के
अनुसार,
कुंभ
स्नान
से
पापों
का
नाश
होता
है
और
मोक्ष
की
प्राप्ति
होती
है।
- यह
संतों,
महात्माओं
और
श्रद्धालुओं
के
लिए
एक
महान
संगम
होता
है।
- इसमें
कई
आध्यात्मिक
प्रवचन,
यज्ञ
और
धार्मिक
क्रियाएँ
संपन्न
होती
हैं।
इतिहास
·
10,000 ईपू - अनुष्ठानिक नदी स्नान की अवधारणा के प्रमाण (इतिहासकार एस बी राय के अनुसार)
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600 ईपू - बौद्ध लेखों में नदी मेलों की उपस्थिति।
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400 ईपू - सम्राट चन्द्रगुप्त के दरबार में यूनानी दूत ने एक मेले को प्रतिवेदित किया।
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300 - रॉय मानते हैं कि मेले के वर्तमान स्वरूप ने इसी काल में स्वरूप लिया था। विभिन्न पुराणों और अन्य प्राचीन मौखिक परम्पराओं पर आधारित पाठों में पृथ्वी पर चार विभिन्न स्थानों पर अमृत गिरने का उल्लेख हुआ है। सर्व प्रथम आगम अखाड़े की स्थापना हुई कालान्तर मे विखण्डन होकर अन्य अखाड़े बने
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547 - अभान नामक सबसे प्रारम्भिक अखाड़े का लिखित प्रतिवेदन इसी समय का है।
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600 - चीनी यात्री ह्यान-सेंग ने प्रयाग (वर्तमान इलाहाबाद|प्रयागराज) पर सम्राट हर्ष द्वारा आयोजित कुम्भ में स्नान किया।
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904 - निरंजनी अखाड़े का गठन।
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1146 - जूना अखाड़े का गठन।
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1300 - कानफटा योगी चरमपन्थी साधु राजस्थान सेना में कार्यरत।
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1398 - तैमूर, हिन्दुओं के प्रति सुल्तान की सहिष्णुता के दण्ड स्वरूप दिल्ली को ध्वस्त करता है और फिर हरिद्वार मेले की ओर कूच करता है और हजा़रों हिन्दू|श्रद्धालुओं का नरसंहार करता है।
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1565 - मधुसूदन सरस्वती द्वारा दसनामी व्यव्स्था की लड़ाका इकाइयों का गठन।
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1678 - प्रणामी सम्प्रदायके प्रवर्तक, महामति श्री प्राणनाथजीको विजयाभिनन्द बुद्ध निष्कलंक घोषित ।
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1684 - फ़्रांसीसी यात्री तवेर्निए नें भारत में १२|12 लाख हिन्दू साधुओं के होने का अनुमान लगाया।
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1690 - नासिक में शैव और वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव साम्प्रदायों में संघर्ष;
60,000 मरे।
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1760 - शैवों और वैष्णवों के बीच हरिद्वार मेलें में संघर्ष;
1,800 मरे।
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1780 - ब्रिटिशों द्वारा मठवासी समूहों के शाही स्नान के लिए व्यवस्था की स्थापना।
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1820 -हरिद्वार मेले में हुई भगदड़ से 430 लोग मारे गए।
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1906- ब्रिटिश कलवारी ने साधुओं के बीच मेला में हुई लड़ाई में बीचबचाव किया।
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1954 - चालीस लाख लोगों अर्थात भारत की 1% जनसंख्या ने इलाहाबाद में आयोजित कुम्भ में भागीदारी की; भगदड़ में कई सौ लोग मरे।
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1989 - गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स|गिनिज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने 6 फरवरी के प्रयाग मेले में 1.5 करोड़ लोगों की उपस्थिति प्रमाणित की, जोकी उस समय तक किसी एक उद्देश्य के लिए एकत्रित लोगों की सबसे बड़ी भीड़ थी।
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1995 - इलाहाबाद के “अर्धकुम्भ” के दौरान 30 जनवरी के स्नान दिवस को 2 करोड़ लोगों की उपस्थिति।
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1998 - हरिद्वार महाकुम्भ में 5 करोड़ से अधिक श्रद्धालु चार महीनों के दौरान पधारे; १४ अप्रैल के एक दिन में 1 करोड़ लोग उपस्थित।
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2001 - प्रयागराज के मेले में छः सप्ताहों के दौरान 7 करोड़ श्रद्धालु, 24 जनवरी के अकेले दिन 3 करोड़ लोग उपस्थित।
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2003 - नासिक मेले में मुख्य स्नान दिवस पर 60 लाख लोग उपस्थित।
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2004 - उज्जैन मेला; मुख्य दिवस 5 अप्रैल, 19 अप्रैल, 22 अप्रैल, 24 अप्रैल और 4 मई।
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2007 - इलाहाबाद में अर्धकुम्भ
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2010 - हरिद्वार
में कुम्भ
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2013 - इलाहाबाद का कुम्भ 14 जनवरी से 10 मार्च 2013
के बीच आयोजित किया गया। यह कुल 55 दिनों के लिए था, इस दौरान इलाहाबाद (प्रयागराज) सर्वाधिक लोकसंख्या वाला शहर बन जाता है। 5 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में 8 करोड़ लोगों का उपस्थित होना विश्व की सबसे अद्भुत घटना है।
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2015 - नाशिक और त्रम्बकेश्वर में एक साथ जुलाई 14,
2015 को प्रातः 6:16 पर वर्ष 2015 का कुम्भ मेला प्रारम्भ हुआ और सितम्बर 25, 2015 को कुम्भ मेला समाप्त हुआ
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2016 - उज्जैन में 22 अप्रैल से आरम्भ
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2019 - इलाहाबाद में अर्धकुम्भ
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2021 - हरिद्वार में कुम्भ लगा।
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2025- महाकुंभ,
(प्रयागराज)2025
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